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REWA सहित विंध्य में थैलेसीमिया नाम की बीमारी पसार रही पैर : जानिए इस बीमारी के क्या है लक्षण और बचने के क्या है उपाय…

माता पिता से अनवांशिक तौर पर बच्चों को मिलने वाला रक्त रोग है थैलेसीमिया
तेज खबर 24 रीवा।


कम उम्र के बच्चां में होने वाली थैलेसीमिया नाम की बीमारी ने रीवा सहित विंध्य में एक बार फिर पैर पसारना शुरू कर दिया है। थैलेसीमिया बच्चों को माता.पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त.रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन के निर्माण की प्रक्रिया ठीक से काम नहीं करती है और रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार.बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।
दरअसल थैलेसीमिया नाम की यह बीमारी रीवा सहित विंध्यक्षेऋ के जिलों में तेजी के साथ पैर पसार रही है। बच्चों के शरीर के भीतर ब्लड को खास तरीके से डैमेज करने वाली इस बीमारी के बढ़ते प्रकोप ने रीवा के चिकित्सकों को हैरानी में डाल रखा है। वर्तमान में इस बीमारी से ग्रसित मरीजों की बात करें तो रीवा में महज 4 माह के भीतर 52 मरीज मिल चुके हैं। इन मरीजों को संजय गांधी अस्पताल के ब्लड बैंक से हर माह मुफ्त में रक्त उपलब्ध कराया जा रहा है।

जानिए क्या है थैलेसीमिया नाम की बीमारी
जानकारी के अनुसार थैलेसीमिया एक वंशानुगत बीमारी है जो पहले आमतौर पर आदिवासियों में पाई जाती थी जानकारों की मानें तो यह बीमारी जन्म से बच्चों में होती है इस बीमारी की वजह से मरीज के शरीर में खून बनता तो है लेकिन वह खून ज्यादा दिनों तक सुरक्षित नहीं रहता इसी लिए थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को बार बार खून की जरूरत पड़ती है। चिकित्सकों का कहना है कि बच्चा जब तक जिंदा रहेगा तब तक उसे खून की जरूरत पड़ती रहेगी विंध्य क्षेत्र में यह बीमारी पिछले कुछ सालों से तेजी से बढ़ी है यही वजह है कि मरीजों के आंकड़ों में बेतहाशा वृद्धि हुई है चिकित्सकों के अनुसार इस बीमारी से ग्रसित 400 से अधिक बच्चे अब तक सामने आ चुके हैं। इनमें से 52 मरीज तो 4 माह में ही सामने आ चुके हैं केंद्र सरकार ने थैलेसीमिया की बीमारी को लेकर मरीजों के मुफ्त उपचार की योजना चला रखी है इसी के अंतर्गत रक्त कोष पोर्टल शुरू किया गया है। इस पोर्टल में थैलेसीमिया के मरीजों का रजिस्ट्रेशन किया जाता है इसके बाद वह जब तक जीवित रहते हैं तब तक मुफ्त में रक्त उपलब्ध कराया जाता है।

जन्मजात बीमारी का ईलाज है
विशेषज्ञों ने बताया कि थैलेसीमिया के मरीजों का इलाज तो है लेकिन इसे कम ही लोग करा पाते हैं। इस बीमारी से ग्रसित बच्चों के माता पिता अपना बोन मैरो ट्रांसप्लांट करके बच्चों को बीमारी से निजात दिला सकते हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराता है तो उसे ता उम्र दवा के सहारे जिंदा रहना पड़ता है। इतना ही नहीं बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने के लिए लाखों रुपए की जरूरत पड़ती है जो आम आदमी के लिए संभव नहीं है इसलिए सरकार ने ऐसे मरीजों के लिए शासकीय अस्पताल में फ्री ब्लड देने का प्रावधान बनाया है।

जनिए क्या है थैलेसीमिया के लक्षण
इस बीमारी से ग्रसित बच्चों में लक्षण जन्म से 4 या 6 महीने में नजर आते हैं। कुछ बच्चों में 5 .10 साल के मध्य दिखाई देते हैं। त्वचा, आँखें, जीभ व नाखून पीले पड़ने लगते हैं। प्लीहा और यकृत बढ़ने लगते हैं, आंतों में विषमता आ जाती है, दांतों को उगने में काफी कठिनाई आती है और बच्चे का विकास रुक जाता है।
बीमारी की शुरुआत में इसके प्रमुख लक्षण कमजोरी व सांस लेने में दिक्कत है। थैलेसीमिया की गंभीर अवस्था में खून चढ़ाना जरूरी हो जाता है और कम गंभीर अवस्था में पौष्टिक भोजन और व्यायाम बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित रखने में मदद करता है। बार बार खून चढ़ाने से रोगी के शरीर में आयरन की अधिकता हो जाती है। 10 ब्लड ट्रांसफ्यूसन के बाद आयरन को नियंत्रित करने वाली दवाएं शुरू हो जाती हैं जो कि जीवन पर्यंत चलती हैं।

रोग से बचने के उपाय
खून की जांच करवाकर रोग की पहचान करना। शादी से पहले लड़के व लड़की के खून की जांच करवाना। नजदीकी रिश्ते में विवाह करने से बचना। गर्भधारण से 4 महीने के अन्दर भ्रूण की जाँच करवाना।

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