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रीवा में एक ऐसा मंदिर जो एक रात में बनकर हुआ था तैयार, जानिए इस मंदिर की क्या है मान्यता…

शिव नगरी के नाम से है मशहूर, मंदिर के नीचे आज भी मौजूद है चमत्कारी मणि…
तेज खबर 24 रीवा।

मध्यप्रदेश की ह्रदयस्थली कहे जाने वाला रीवा का देवतालाब देश और दुनिया में शिवनगरी के नाम से मशहूर है। देवतालाब में ऐतिहासिक शिव मंदिर स्थित है जहां दूर दराज से आकर लोग भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते है।
देवतालाब मंदिर की ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में हुआ था। हांलाकि इस मंदिर का निर्माण होते किसी ने भी नहीं देखा लेकिन जब लोगों ने सुबह देखा तो यहां पर एक विशाल मंदिर बना हुआ था। इस मंदिर की एक और खास बात यह है कि यहां पर अलौकिक शिवलिंग की भी उत्पत्ति हुई थी और यह शिवलिंग रहस्यमयी है जो दिन में चार बार रंग बदलती है।

जानिए कैसे और क्यों हुआ मंदिर का निर्माण…
जानकारों के अनुसार भगवान शिव के परम भक्त महर्षि मार्कण्डेय सनातन और शिव भक्ति के प्रचार प्रसार के लिऐ भ्रमण किया करते थे। इसी भ्रमण के दौरान महर्षि मार्कण्डेय का विंध्य की धरा में रीवा अगमन हुआ और वह देवतालाब में विश्राम के लिए ठहरे। देवतालाब में विश्राम के दौरान ही महर्षि के मन में भगवान शिव दर्शन की अभिलाषा जाग उठी। महर्षि ने अपने अराध्य में कह दिया कि चाहे जिस रुप में दर्शन मिले किंतु दर्शन मिलने तक वह यहीं तप करते रहेंगे।
कई दिनों तक महर्षि के तप की तीव्रता को देखते हुऐ भगवान शिव ने विश्वकर्मा जी को आदेश किया कि वो उस स्थान पर एक शिव मंदिर का निर्माण करे। फिर क्या था भगवान शिव का आदेश मिलते ही भगवान विश्वकर्मा जी ने एक विशालकाय पत्थर से रातों रात उस स्थान पर शिव मंदिर का निर्माण कर दिया। भगवान शिव के दर्शन को तपस्या में लीन महर्षि मार्कण्डेय को मंदिर के निर्माण का कतई आभास नहीं हुआ और मंदिर बन जाने के बाद भगवान शिव की मानस प्रेरणा से महर्षि ने अपना तप समाप्त किया और तभी से यह मंदिर पूरे प्रदेश व देश में पूज्य है।

मंदिर के नीचे है दूसरा शिव मंदिर, यहां मौजूद है चमत्कारिक मणि
इस मंदिर की एक और मान्यता है कि मंदिर के नीचे एक और शिव मंदिर भी है और यहां चमत्कारिक मणि मौजूद है। बताते है कि कई वर्षो पहले मंदिर के तहखाने से लगातार सांप बिच्छुओं के निकलने की वजह से मंदिर के तहखाने के दरवाजा बंद कर दिया गया है। इस शिवलिंग के अलावा रीवा रियासत के महाराजा ने यहीं पर चार अन्य मंदिरों का निर्माण कराया है। ऐसा माना जाता है कि देवतालाब के दर्शन से ही चारोधाम की यात्रा पूरी होती है। इस मंदिर से भक्तों की आस्था जुड़ी है, जहां प्रतिवर्ष मेले का भी आयोजन होता है और सावन सोमवार में तो भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

रामेश्वरम के समान है देवतालाब
मान्यता है कि चार धाम की यात्रा तभी सफल मानी जाती है जब गंगोत्री का जल रामेश्वरम शिवलिंग के साथ देवतालाब स्थित महादेव की शिवलिंग पर भी अर्पित किया जाए। इस कारण से तीर्थो की यात्रा पूर्ण करने के बाद लोग गंगोत्री का जल लेकर शिव मंदिर देवतालाब आते है और तीर्थ यात्रा को सफल बनाने के लिऐ शिवलिंग पर जल चढ़ाते है।

तालाब से मिलकर बना देव तालाब
,कहते है कि देवतालाब का नाम देव स्थान और तालाब के साथ मिलकर पड़ा। देवतालाब मंदिर के आसपास कई तालाब है और यहां पर कई तालाबों का होना ही इसकी विशेषता है। बताते है कि शिव मंदिर परिसर में जो तालाब है यह शिव कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध है और शिव कुण्ड से जल लेकर ही श्रद्धालू सदशिव भोलेनाथ के पंच शिवलिंग विग्रह में चढ़ाने की परंपरा रही है। बुजुर्गो के अनुसार मान्यता है कि पांच बार जल लेकर पांचो मंदिर में जला चढ़ाया जाता है।

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