कभी लोगों के मुंह की लाली बनता था बंगला पान, आज पैदावार को हो रहा मोहताज…
तेज खबर 24 रीवा।
देश और दुनिया में मशहूर मध्यप्रदेश के रीवा जिले में स्थित एक छोटे से गांव में होने वाली पान की पैदावार अब खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी है। रीवा के महसांव गांव का बंगला पान नाम से मशहूर यह पान कभी देश के कोने कोने सहित पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, श्रीलंका व बंग्लादेश सहित अन्य देशों में लोगों के मुंह का स्वाद बनते थे लेकिन आज वहीं बंगला पान दूसरे देश के साथ साथ अपने ही देश में अपनी पहचान खोता जा रहा है।
एक समय था कि जब रीवा के महसांव गांव के हर घर में पान की खेती होती थी लेकिन देश और विदेशों में गुटखे के बढ़ते प्रचलन ने पान का स्वाद ही बदल दिया और अब पान की खेती करने वालों के सामने रोजगार का संकट आ खड़ा हुआ है।
कभी विरासत में मिलती था पान की खेती का धंधा
रीवा जिले में एक ऐसा दौर था जब मंहसांव गांव सहित आसपास के गांवों में भी जगह जगह पान की खेती हुआ करती थी। यंहा के चौरसिया समाज के किसानो का यह पुस्तैनी धंधा हुआ करता था जो उन्हें विरासत में मिलती थी। यहां का बंगला पान विश्वप्रसिद्ध पान हुआ करता था जो लोगों की पहली पसंद हुआ करता था और लोग बड़े शौक से इसे खाते थे। ये पान भारत के कोने कोने में तो बिकता ही था उसके आलावा पाकिस्तान, श्रीलंका सहित और कई देशों में भी लोगों के मुँह का स्वाद बना करता था।
गुटखे के प्रचलन से पान की खेती पर लगा ग्रहण
यहां के किसानो का पान की खेती से घर चलता था और यही इन किसानो का मुख्य धंधा हुआ करता था। बदलते दौर के चलते पान की खेती करने वाले किसान गुटखा संस्कृति का शिकार हो गए और इनके पान की जगह गुटखा और पान मसाले ने ले ली जिसके चलते पान की खेती करने वाले किसान इससे किनारा करने लगे है। यहां का बंगला पान जो कभी देश विदेश में रीवा की पहचान हुआ करता था वो खुद अब अपनी पहचान खोता जा रहा है। पान की खेती करने वाले किसानो के पास अब दूसरा कोई रोजगार नहीं है। जिससे किसी तरह से मेहनत मजदूरी और दूसरा काम करके किसान अपना परिवार चला रहे है। कुछ किसान पान की खेती को बचाये रखने के लिए इसमें लगातार आ रहे घाटे के बावजूद अभी भी इसकी खेती कर रहे है ।
पान की खेती से चलता था किसानों का परिवार
एक समय था जब पान की खेती करने वाले किसानो को पान की खेती से काफी फायदा होता था। इसी से वो बच्चों का लालन पालन और पढ़ाई लिखाई सहित पूरा घर चलाते थे। लेकिन अब ये हालात है की इससे बच्चों की पढ़ाई तो दूर किसी तरह से उनका घर चल जाए यही काफी है। इन किसानो को अभी भी इस बात की उम्मीद है की शायद सरकार इस ओर ध्यान दे और पान की खेती को बढ़ावा दे। जिससे यंहा का बंगला पान एक बार फिर देश विदेश में अपनी पहचान बना सके।